जब हम सोते हैं तो बिस्तर से क्यों नहीं गिरते, जानिए ऑक्सफोर्ड के प्रोफेसर का क्या कहना है?

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ऐसा बहुत ही कम होता है कि व्यक्ति सोते हुए बिस्तर से गिर जाए. आप अगर एक छोटे बेड पर भी सोएं तो बिस्तर से नहीं गिरते हैं, भले आपकी रात कितनी भी बुरी क्यों न हो?

रात को सोते समय हम खर्राटे लेते हैं, नींद में बात करते हैं, हंसते हैं, चिल्लाते हैं, लात मुक्के चलाते हैं और बिस्तर पर इधर से उधर करवटें बदलते हैं लेकिन बिस्तर से नहीं गिरते.

क्या कहते हैं ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रसेल फोस्टर ने बीबीसी को बताया, “यह दिलचस्प है क्योंकि हमें लगता है कि जब हम सोते हैं तो हम अपने आसपास की दुनिया से पूरी तरह से अलग हो जाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. अगर पास में कोई चिल्लाता है, तो हम जाग जाते हैं.”

उन्होंने बताया, “हमारा शरीर रिसेप्टर्स की मदद से जानकारी एकत्र करना जारी रखता है और एक ऐसा भाव है जो तय रूप से सोता नहीं है.”

प्रोफेसर रसेल ने कहा, “यह किसी छठी इंद्रीय की तरह है. जब हम बच्चे होते हैं तो यह उतनी अच्छी तरह से काम नहीं करती. यही वजह है कि बचपन में हम बिस्तर से गिर जाते हैं. उम्र बढ़ने के साथ यह बेहतर काम करने लगती है.”

उन्होंने बताया कि जब हम सोते हैं तो पूरी तरह से ब्लैक आउट नहीं होते हैं.

लोकप्रिय संस्कृति में छठी इंद्रीय एक ऐसे ख्याल से जुड़ी है जो दूरदर्शिता, अंतर्ज्ञान या कहें कि स्वर्गदूतों द्वारा बसाई दुनिया से संवाद करने का काम करती है.

क्या आप ऐसा कर सकते हैं?

पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी, यूएसए में काइनेसियोलॉजी और न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर के रॉबर्ट सैनबर्ग इसके पीछे ‘प्रोप्रियोसेप्शन’ को भी एक वजह मानते हैं.

वे कहते हैं, “प्रोप्रियोसेप्शन, हमारे शरीर की ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम का एक प्रमुख घटक है, रोजमर्रा के जीवन में हमें इसकी जरूरत पड़ती है.”

आसान भाषा में समझें तो प्रोप्रियोसेप्शन वह है कि हमारे पास यह समझ है कि हमारे शरीर का प्रत्येक भाग कहां पर है.

हमारी मांसपेशियों, जोड़ों और त्वचा में रिसेप्टर्स सेन्यूरो फिजियोलॉजिकल सिग्नल मिलते हैं जिससे प्रोप्रियोसेप्शन संभव है.

उदाहरण के लिए अगर आपसे कहें कि आप दाएं हाथ की अंगुली से बाएं हाथ की कोहनी को छुएं.

देखिए आपने ऐसा बिना देखे कर लिया, क्योंकि आपके दिमाग को पता है कि आपके बाएं हाथ की कोहनी कहां पर है

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